क्षत्रिय

 हरया! "इससे जितने देर तक लोगों को परेशानी होगी, घर का काम कैसे चलेगा, घर के लड़के और अन्य जीव जो उनके माध्यम से जीते हैं, अब भटकेंगे तो उसका सौ गुना दंड भगवान के यहां मिलेगा। आग दिखने में सभी जीव मरते हैं। एक आदमी के कह से हजारौं का नुकसान होता है। इसकी सजा बहुत बड़ी होगी। कल्पौं नर्क भोगना पड़ेगा। आपने घर बार छोड़ा, साधू भेष बनाया, अभी क्षत्रीपने का अर्थ न। पांचों चोरछठे मन हो जाँय तब वह छत्री कहा जाना जाना है। तुम कैसे साधू साधू हो गए?" तो कहा, "हम फोनोग्राफ बजाते थे। हमने माता से कहा, 'हम भजन करने जाते हैं।' बड़े भाई थे, उनका परिवार था, उनकी जुम्मेदारी है ही खाने पीने की कोई कमी नहीं है। माता ने कहा, जाओ। साल में दो मरतबा आया करना जब तक हम जिंदा रहते हैं। गूढ़ से हैं

संत श्री गंगाराम दास महाराज...

श्री महाराज जी की जय!


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